"नाम "
मैं " नाम " हूँ।...
तुम सबकी " पहचान " हूँ।...
आता हूँ मैं इस दुनिया में तुम्हारे " जन्म " के साथ,
पर मिटता नहीं तुम्हारी " मृत्यु " के बाद।...
कर्मों की नाव में सवार है मेरा अस्तित्व ।
क्योंकि सुकर्मों से होती साकार मेरी तस्वीर ,
और दुष्कर्मों से बिगडती मेरी तस्वीर।...
मैं जुड़ा कई बड़ी और अच्छी हस्तियों के साथ,
हँसा , फला - फूला और जिया मैं मस्तियों के साथ।
" नाम "- मैं था उन बुरे बिगड़े लोगों का भी नाम,
जो थे नाकारा , किये जिन्होंने पाप कई,
और मैं जो "नाम " था , अब हो गया " बदनाम ",
अब हो गया " बदनाम " ।...
हर " नाम " की भी एक किस्मत होती है,
उसके उठने - गिरने से उसकी " माँ " हँसती - रोती है।
उस " माँ " के दामन को मैं चाहता हूँ सँवारना,
पर मुझसे जुड़े हर इंसान की भी एक नीयत होती है।...
एक " बच्चे " के अच्छे कर्मों से , सच्चे कर्मों से,
एक " पिता " सर उठा के चलता है।
" रिश्तों " का वो पेड़ इसी तरह फूलता और फलता है।
उस " बच्चे " के दूषित कर्मों से , पाप भरे धर्मों से,
" रिश्तों " का वो पेड़ सूख जाता है,
और उस " पिता " का महनत से बनाया हुआ वो " नाम " डूब जाता है।...
खूब सँवारो " नाम " हूँ मैं,
पूज्य भी हूँ - " भगवान " हूँ मैं।...
मुझपे टिका है इस " पृथ्वी " पे जीवन का अस्तित्व,
प्यार करो , खूब निखारो मुझे - " सम्मान " हूँ मैं,
" नाम " हूँ मैं।....
- आर्यन " पथिक "
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