Poetry

Poetry is not an opinion expressed.
It is a song that rises from a bleeding wound
or a smiling mouth...!!!

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Tuesday, 13 December 2011

Chaand ki Holi...!!!

चाँद की होली।



"The moon appeared so red today as if it just had some game with small children and the colored it red with their crayons and other colors...as if it has just enjoyed the festival of colors ' HOLI '... "
आज देखा चाँद को  , तो यूँ लगा कि उसने भी होली खेली है।
तारे भी छोड़ गए साथ उसका , अब उसकी चांदनी भी अकेली है।...

जब सह न पाया अकेलापन अपना ,
तो खींचा उसने साड़ी लहरों को।
थोड़ा  सा नाराज़ होकर वो बोला,
अब कोई नहीं तो ये लहरें ही मेरी हैं।...

पर क्या फायदा,
लहरें भी न  पहुँची उस तक , कोई नहीं साथी है उसका।
पछताता बैठा है ये सोचकर,
की बेमतलब ही इतनी बड़ी चौखट मेरी है।...

थोड़ा है जागा , थोड़ा है सोया।
किसी क ख़्यालों में न जाने कबसे खोया - खोया।

थोड़ा है सहमा , थोड़ा  है अकेला,
काले - काले बादल ने भी अब उसे हर ओर  से घेरा।

अब रोता बैठा है ऊपर,
ये बोलकर , कि  न कोई दोस्त है मेरा और न कोई सहेली है।...

अकेल ही बैठा है तनहा - तनहा,
अपनी कमज़ोर सांसें गिनता वो लम्हा - लम्हा।
पर अचानक से खुश हर रात वो होता है,
ये देखकर की कोई उसे हर रोज़ देखकर सोता है।
कोई तो मुझे देख रहा है।
कोई तो मुझपे लिख रहा है।
उस अकेले की दुनिया को , उस लिखनेवाले की दुनिया को
देखकर चाँद ने कहा,
की " अब उसकी सांसें भी मेरी हैं,
उसकी रातें भी मेरी हैं।
मेरी तनहा दुनिया उसकी,
और उसकी वीरान दुनिया भी मेरी है।...
उसकी वीरान दुनिया भी मेरी है।..."

क्योंकि वो जानता था ,
न तो उसने होली खेली है,
और न ही मैंने होली खेली है।
ये जो रंग दुनिया को दिखता है,
ये बस नज़र का धोखा है,
ये शायद हम दोनों के सूने से जीवन की कोई रंगीन सी पहेली है।...

मैंने देखा चाँद को कि  उसने होली खेली है।...
उसने होली खेली है।...


- आर्यन " पथिक "

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