Poetry

Poetry is not an opinion expressed.
It is a song that rises from a bleeding wound
or a smiling mouth...!!!

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Wednesday, 1 August 2012

एक सितम और मेरी जान अभी जान बाकी है।

एक सितम और मेरी जान अभी जान बाकी है...।

(inspired by shafqat amanat ali)



दिल खोल कर मैं बैठा रह गया,
तेरे हर गुनाहों को मैं सहता रह गया।
फिर भी अकेला छोड़ा है तुने इस दुनिया में मुझको,
अरे मैं कहता हूँ , एक सितम और मेरी जान अभी जान बाकी है।...


बहुत अकेला अकेला सा महसूस होता है अब तेरे बिन,
सोच ही न पाया जल्दबाजी में किससे नाता अब जोडूं।
मय ही अब मेरा सहारा बन गया,
और मैं कह बैठा - एक नज़र और मेरी जान अभी जाम बाकी है।...


आवारगी में जो ज़िद बढ़ती गयी,
तेरे बिना मेरी आदतें बिगडती गयी।
अजनबी भी अब ऊब उठे मुझसे,
और मैं नशे में फिर कह बैठा - एक रहम और मेरी जान , अभी शाम बाकी है।...


अरे हम तो मोहब्बतों में लुटाने वालों में से थे,
पर तुने तो नफरत भी करना सिखा दिया।
तुझसे प्यार करके हम खुद भी लुट गए हैं अब,
पर जाते कहाँ हो...एक करम और मेरी जान अभी नाम बाकी है।...


तुम तो हमे पत्थर ही समझ बैठे थे नफरत के आग़ोश  में आकर,
एक बार मेरी मोहब्बत को आज़मा को देखते , हम फूल भी होते तो रास्ते में न आते।
यूँ दगा देके जो अब जा रहे हो तो सुन लो,
मैं कहता हूँ की एक सितम और मेरी जान अभी जान बाकी है।...
एक सितम और मेरी जान अभी जान बाकी है।...




- आर्यन " पथिक "