Poetry

Poetry is not an opinion expressed.
It is a song that rises from a bleeding wound
or a smiling mouth...!!!

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Saturday, 16 January 2010

LAFZ

लफ्ज़ !


खामोश लफ़्ज़ों की ज़ुबानी जो समझी,
तो समझ में आई तन्हाई।
उन लफ़्ज़ों की ख़ामोशी जो जानी,
तो दिल में जगी बेचैनी और रुसवाई।...

राहगीरों की आवाजाही में,
सुनी मैंने अपनी बुराई थी।
  कुछ कहते थे और कुछ चुप भी थे,
पर हर की आवाज़ मुझ तक आई थी।...

उन लफ़्ज़ों की क्या ग़लती  थी,
जो तीख़े  थे , जो कड़वे थे।
उन लफ़्ज़ों की क्या गलती थी,
वो तो बस अपने मालिक के पैग़ाम थे,
अपने मालीक के वो ग़ुलाम थे।...

वो चुभते थे बहुत ज़ोर  से,
वो आते थे हर ओर से।
वो खुद भी पछ्ताते  थे अपने इस वार से,
पर क्या करते बेचारे , उनके हर निशाने पर मेरे ही नाम थे।...

मैं हंसता हूँ हर पल रो-रोकर,
मैं जीता हूँ हर पल मर-मरकर।
जो अश्क़ मेरे कहते हैं , वो बातें मेरी कहती नहीं,
जो बातें मेरी कहती हैं , वो सच है कुछ भी नहीं।...

बस इतनी सी मेरी और लफ़्ज़ों की कहानी नहीं,
मेरे अश्कों की भी कुछ कीमत है,
वो केवल सादा पानी नहीं।...

जो कोई समझ ले मेरे अश्कों को , मेरे प्यार को,
मेरी प्यास को , मेरी तन्हाई को , मेरी ज़िन्दगी को,
ख़ामोश  ख़ामोश  से मेरे लफ़्ज़ों को ,
तो मेरी भी कोई ज़िन्दगी है।
वरना ऐसा जीना भी कोई जीना नहीं।...


- आर्यन " पथिक "